Gunjan Kamal

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यादों के झरोखे से " लाइब्रेरी "

दोस्तों! मेरे मन के भाव जो यादों के झरोखों में याद बनकर कैद हो चुके हैं वह  आप सभी से कहना चाहती थी लेकिन कभी  समय ही  नहीं मिलता था। अब जब मिल रहा तो अपनी उन यादो को लेकर आप सभी के समक्ष उपस्थित हो गई हूॅं।हम सभी जानते हैं कि हम सब के शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए हमें अच्छे खान- पान , व्यायाम और योग की आवश्यकता होती हैं ठीक उसी तरह हमारे मानसिक स्वास्थ्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए  हमें ज्ञान की आवश्यकता होती हैं । यह ज्ञान ही तो हमारे मन-मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में हमारी मदद करता है ।  बचपन से ही  हमें ज्ञान प्राप्ति के लिए पहले तो  विद्यालय( स्कूल ) उसके बाद महाविद्यालय ( काॅलेज ) और विश्व विद्यालय ( यूनिवर्सिटी ) में भेजा जाता है । हम इन स्थानों पर जाकर अपने मस्तिष्क की क्षमता के अनुसार ज्ञान अर्जित भी करते हैं जिनमें हमारे शिक्षकगणों का तो योगदान होता ही है साथ ही हमारे ज्ञान अर्जित करने में पुस्तकों का विशेष योगदान होता हैं । किताबों से ही तों हम सभी भूतकाल से लेकर वर्तमान काल तक की बातें जानते हैं । मैं तो सोचती हूॅं कि यदि किताबें नहीं होती तो क्या हम भूतकाल में घटित बातों को जान पाते ?? नहीं बिल्कुल नहीं ! भूतकाल में घटित होने वाली बातों को इन किताबों में ही तो संग्रहित किया था  जिसे आज हम जान सकें और  हमारी आने वाली पीढ़ी भविष्य में  जान पाएंगी।

 
दोस्तों! लाइब्रेरी के बारे में हम सभी जानते ही हैं यह उनके लिए कोई नया शब्द नहीं हैं जिन्होंने स्कूल , काॅलेजों में इसे देखा है । फिल्मों में काॅलेज और लाइब्रेरी के बारे में जो भी कुछ  दिखाया जाता हैं वह हमारी रियल लाइफ वाली लाइब्रेरी से बिल्कुल ही भिन्न ( अलग ) होता हैं । फिल्मों  में हम काॅलेज के प्रोफेसर को कभी भी पढ़ाते हुए नहीं देखते हैं वो तो अलग ही पढाई कराते हुए दिखते हैं। मैं भी काॅलेज गई हूॅं  लेकिन ऐसे प्रोफेसर मुझे कभी नहीं मिले ।😊😊 हमलोग तो अपने सर से इतना डरते थे कि पूछो मत ! काॅलेज की लाइब्रेरी भी मुझे  फिल्मों जैसी कभी नहीं दिखी । हमलोग तो लाईब्रेरी में किताबों को इश्यू करवाने ही जा पाते थे । लाइब्रेरी में जाकर किताब सलेक्ट किया । बैग से लाइब्रेरी कार्ड निकाला लाइब्रेरियन सर को कार्ड दिया और रजिस्टर पर हस्ताक्षर ( साइन ) किया । इश्यू कराई गई  किताबों को  हाथ में लिया और चुपचाप लाइब्रेरी के बाहर निकल लिया और घर आकर उस किताब को पढ़ा । यह थी हमारी लाईब्रेरी और हमने मेरा मतलब है, मैं और मेरे  सभी दोस्तों ने लाइब्रेरी में जाकर काॅलेज के पाॅंच सालों में बस यही तो किया । फिल्मों में जो लाईब्रेरी वाला रोमांस करते हुए दिखाते हैं उसका अनुभव तो मैं और मेरे दोस्तों में से किसी ने नहीं किया । जिन्होंने इसका अनुभव किया हो वही जाने 😃😃

दोस्तों! जो लोग किताबें पढ़ने के शौकीन होते हैं वह अपने घर के एक कमरें को ही लाइब्रेरी की शक्ल दें देते हैं और उनके दिन और रात का  अधिकांश समय वहीं पर किताबों के बीच ही व्यतीत होता है ।  जिसके लिए उन्हें अपनी पत्नी और कभी - कभी बच्चों से भी उलाहने सुनने पड़ते हैं लेकिन वे किसी भी बात की परवाह किए बगैर अपने ज्ञान को उम्र की सीमा से परे मानकर  ज्ञान अर्जित करने में लगे रहते हैं । उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन क्या कह रहा है ?? वो तो बस अपनी किताबों के साथ ऐसे जुड़े हुए होते हैं जैसे शरीर और साॅंस ।

 
दोस्तों  ! मेरे ससुर भी कुछ इसी तरह के किताब प्रेमियों की श्रेणी में आते थे। थे मैंने इसलिए कहा क्योंकि उन्हें गए अब  दो साल हो  चुके है । मैं , मेरे पति और मेरे बच्चें ! हम सभी ने उनसे बहुत कुछ जाना और सीखा है । वह काॅलेज में  तो इतिहासशास्त्र के प्रोफेसर थे लेकिन उन्होनें सब विषयों में महारत हासिल कर रखी थी। साहित्य , उपन्यास , काव्य संग्रह , गद्ध , पौराणिक कथाएं, महाभारत , रामायण , गीता सभी के समस्त खंड उनकी लाइब्रेरी में थे और आज भी है लेकिन कुछ - कुछ खंड नहीं मिल रहें हैं क्योंकि उनकी एक आदत यह भी थी कि कोई भी उनकी लाइब्रेरी में आ जाता था और जो किताब पसंद आए उठाकर ले जाता था जिसकी जानकारी बस उन्हें ही रहती थी । हम सबमें से कोई भी यह नहीं जान पाता था कि वह किताब कौन ले गया ?? वह अपनी मर्जी से नहीं बताते थे कि वह कौन था जो कृष्ण की आत्म कथा कथा का सातवां खंड ले गया । जब हम में से कोई लाइब्रेरी में उस ग्रंथ को पढ़ने के उद्देश्य से ढूॅंढने जाता था तभी हमें पता चलता था कि वह खंड तो गायब है । जब हम उनसे पूछते थे तभी वह बताते थे कि फलां प्रोफेसर साहब लें गए है ।  


दोस्तों! उनके इस दुनिया से जाने के बाद जैसे वह आज हमारे बीच नहीं हैं वैसे ही हमारे घर की   लाइब्रेरी  में से बहुत सी किताबें भी आज हमारे बीच नहीं हैं और हमें पता भी नहीं है कि वह किताबें किसके पास है ?? उनके जाने के तीन महीने बाद भी हमें आज तक पता नहीं चला है और कोई सामने से यह तक कहने नहीं आया है कि मैं प्रोफेसर साहब से किताब ले गया था । खैर ... वह किताबें हमारी नहीं तो कहीं और ,  किसी और का तो ज्ञान बढ़ा ही रही होंगी । हम सब को इतिहास , वर्तमान और भूगोल में से कुछ भी जानकारी चाहिए होती थी  हम सब उन्हीं से पूछ लेते थे क्योंकि हमारे परिवार  की लाइब्रेरी वही  तो थे । आज वह हमारे बीच नहीं है लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि वह जहाॅं भी होंगे अपने ज्ञान से सबको लाभान्वित कर रहे होंगे । मैंने पढ़ा था कि जब एक बार लोकमान्य बालगंगाधर तिलक से किताबों के महत्व के बारे में पूछा गया था तो उनका जवाब था - " मैं नर्क में भी उत्तम किताबों  का स्वागत करूॅंगा क्योंकि ये किताबें जहाॅं होंगी वहीं पर स्वर्ग होगा "


 दोस्तों! जब भी मैं लाइब्रेरी में ‌जाती हूॅं मुझे लगता है वह वहीं पर है और हमें किताबें पढ़ते हुए देख कर खुश हो कर हमारे सिर पर हाथ फेरकर हमें आशीर्वाद दे रहे है । उनकी कमी तो हम सबको जिंदगी भर खलेगी लेकिन उनके द्वारा बनाई गई लाइब्रेरी को देखकर कभी लगता ही नहीं कि वह  हमारे बीच नहीं हैं । वह तो हमारी लाइब्रेरी के रूप में ताउम्र हमारे साथ हैं । मैं कुछ ज्यादा ही भावुक ( इमोशनल ) हो गई और मैंने आप सभी को भी  भावुक ( इमोशनल ) कर दिया । साॅरी ! आज के लिए इतना ही। 

यादों के झरोखे से एक और याद के साथ फिर से अपने मन के कुछ और भाव जो अब यादों के झरोखे में कैद हो चुके हैं, के साथ मिलती हूॅं तब तक के लिए 


            🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻बाय 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻


                                                     धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻

  " गुॅंजन कमल " 💓💞💗
    



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3 Comments

Varsha_Upadhyay

16-Dec-2022 06:57 PM

शानदार

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Mahendra Bhatt

16-Dec-2022 05:36 PM

बहुत खूब

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Sachin dev

12-Dec-2022 07:32 PM

Well done

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